Rankini Devi Temple | Jadugora (Rankini Mandir) – History, How to Reach, Timings

रंकिनी माता को देवी दुर्गा के एक रूप के रूप में पूजा जाता है। यह झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के प्राचीन और महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है। शहर से 30 किलोमीटर की दूरी पर बसे जादूगोड़ा के पहाड़ और घने जंगलों के बीच माता रंकिणी का मंदिर स्थित है। यह मंदिर भक्तों की आस्था और विश्वास का केंद्र है। इसलिए यहां दूर-दराज से भक्त पूजा करने और अपनी मन्नत लेकर आते हैं। मान्यता है कि लाल चुनरी में नारियल बांधकर मन्नत मांगने से मां हर मनोकामना पूरी करती है। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में, घने जंगल से यात्रा करने वाले लोग अपनी सुरक्षा और भलाई के लिए रंकिनी देवी मंदिर में पूजा करते थे। मुख्य मंदिर के दोनों ओर भगवान गणेश को समर्पित एक मंदिर और भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर है।

Rankini Devi Temple
Rankini Devi Temple (Photo Courtesy : @aabhixek)

वर्तमान मंदिर लगभग 70 वर्ष पुराना है जिसे 1950 के दशक में बनाया गया था। मंदिर का प्रबंधन करने वाले ट्रस्ट का गठन 1954 में किया गया था। चूंकि यह काफी आधुनिक संरचना है, इसलिए कोई जटिल पत्थर की वक्रता या स्थापत्य या डिजाइन उत्कृष्टता का कोई अन्य कार्य नहीं पाया जा सकता है। मुख्य प्रवेश द्वार के ठीक ऊपर महिषासुर वध अवतार में अपने चार बच्चों के साथ देवी दुर्गा का एक बड़ा बास राहत कार्य (Bas Relief Work) है।

हाता-जादुगोड़ा स्टेट हाईवे पर स्थित यह मंदिर पोटका प्रखंड के बंसीला ग्राम पंचायत के रोहिणीबेरा गांव में है। यह जादूगोड़ा से लगभग 3 किमी और टाटानगर रेलवे स्टेशन से 26 किमी दूर है। “जादुगोरा” या “जादुगोड़ा” नाम “जादुगोड़ा” शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ स्थानीय आदिवासी भाषा में ‘हाथियों की भूमि’ होता है। कहा जाता है कि एक समय था जब यह कई एशियाई हाथियों का घर था। लेकिन समय के साथ जितनी खदानें और कारखाने स्थापित हुए, वे निवास स्थान के नुकसान के कारण घने जंगलों में चले गए। यह मंदिर अब झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में व्यापक रूप से लोकप्रिय है और प्रतिदिन कई भक्तों द्वारा इसका दौरा किया जाता है।

Rankini Mandir
Rankini Mandir
आप जमशेदपुर के इन मंदिरों के दर्शन कर सकते हैं।
माता रूपी एक शीला की स्थापना

माता रंकिणी मंदिर के बारे में बताया जाता है कि यह एक पाषाण/पत्थर में विराजमान है और आज भी जागृत है। माता रंकिणी मंदिर की स्थापना 1947-50 के दौरान की गई थी। वर्तमान में जिस स्थान पर मां की पूजा होती है वहां वह स्थापित की गई है। मुख्य मंदिर से नीचे गुजरने वाले नाला के बगल में स्थित कपाड़ घाटी में माता रंकिणी वास करती थी। माता एक बंधन में पाषाण/पत्थर के रुप में थी। कहा जाता है कि दिनबंधू सिंह नाम के व्यक्ति को माता सपने में आई और खुद को एक पाषाण/पत्थर के रुप में होने की बात बताई। मां ने सपने में यह भी कहा कि उन्हें पूजा चाहिए और तुम ही मेरी पूजा करोगे। उस दिन से दिनबंधू सिंह उस चट्टान में सिंदूर और एक रंगा कपड़ा से पूजा करने लगे। उसके कुछ साल बाद माता ने दिनबंधू को दिव्यस्वप्न देकर कहा कि उन्हें एक ऐसे स्थान में स्थापित करें, जहां आम जनमानस भी पहुंच सके और उनकी पूजा कर सके। माता की आदेश का पालन करते हुए दीनबंधु ने माता के रूप में एक शीला की स्थापना की जहां आज मां रंकिणी का भव्य मंदिर स्थापित है। दिनबंधू के बाद उनके पूत्र मानसिंह और अब मानसिंह के बाद उनके पूत्र बैद्यनाथ सिंह मंदिर और बनाया गया ट्रस्ट का संचालन कर रहे हैं। कहा जाता है कि मां के रूप में पूजे जाने वाले पाषाण/पत्थर का आकार साल-दर-साल बढ़ता ही जा रहा है। इस पाषाण/पत्थर को जीवित पाषाण कहा जाता है। लोग इसे माता की महिमा और साक्षात उनके यहां होने का प्रमाण बताते है।

कन्या से कैसे पाषण हो गईं माता

माता रंकिनी यहाँ के जंगलों में निवास करती थीं। एक दिन एक चरवाहा एक लड़की को जंगल में अकेले घूमते देख पूछने लगा कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो और किस गाँव से हो। लड़की ने कोई जवाब नहीं दिया और चरवाहे से बचने के लिए वह कपाड़ घाटी पहुंच गई, जहां एक धोबी कपड़े धो रहा था। वह कपड़े के थान के अंदर जाकर छूप गई। कुछ देर बाद जब चरवाहे को लड़की नहीं मिली तो वह लौट आया। इस दौरान मां जिस कपड़े में छिपी थी वह पत्थर का हो गया था। कपाड़ घाटी में आज भी इस पाषाण/पत्थर की पूजा की जाती है और बकरे की बलि दी जाती है। पाषाण को नजदीक से देखने पर वाकई में ऐसा लगता है कि चट्टान एक दूसरे पर उसी तरह रखे हुए हैं, जैसे कपड़े का थान रखा जाता है।

Rankini Mandir Hill Top
Rankini Mandir Hill Top (Photo Courtesy : @meinrahul)
हरि मंदिर

राधा-गोबिंद को समर्पित रंकिनी मंदिर के पास हाल ही में एक हरि मंदिर बनाया गया है।

ऐसे पहुंचें मंदिर

वायुमार्ग : कोलकाता के अलावा, यहां का निकटतम हवाई अड्डा रांची का बिरसा मुंडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा है, जो रंकिनी मंदिर से लगभग 166 किमी दूर है।

रेलमार्ग : टाटानगर रेलवे जंक्शन मंदिर से 26 किमी दूर स्थित है। टाटानगर (जमशेदपुर) दक्षिण पूर्व रेलवे के सबसे प्रमुख रेलवे स्टेशनों में से एक है और यह भारत के प्रमुख शहरों जैसे कोलकाता, मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, पटना, रायपुर, भुवनेश्वर, नागपुर आदि से सीधे जुड़ा हुआ है। रेलवे स्टेशन को टाटानगर के नाम से जाना जाता है।

सड़क मार्ग : हाता-जादुगोड़ा स्टेट हाईवे पर स्थित यह मंदिर पोटका प्रखंड के बंसीला ग्राम पंचायत के रोहिणीबेरा गांव में है। यह जादूगोड़ा से लगभग 3 किमी और टाटानगर रेलवे स्टेशन से 26 किमी दूर है।

जमशेदपुर से : रंकिनी मंदिर पहुँचने के लिए आप अपनी कार या बाइक का उपयोग कर सकते हैं। इसके अलावा आप लोकल ट्रांसपोर्ट जैसे कैब, ऑटो या बस का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। शहर से रंकिनी मंदिर की दूरी करीब 30 किमी है।

कोलकाता से : अगर आप कोलकाता से रंकिनी मंदिर पहुंचना चाहते हैं, तो आप रेल और सड़क मार्ग से आसानी से पहुंच सकते हैं। यदि आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं, तो आपको टाटानगर जंक्शन पर उतरना होगा और फिर स्टेशन से रंकिनी मंदिर तक स्थानीय परिवहन जैसे कैब, ऑटो या बस का उपयोग भी कर सकते हैं।

अगर आप सड़क मार्ग से यात्रा कर रहे हैं तो आप इन मार्गों का उपयोग कर सकते हैं।

1) 270 km via NH16 and NH49 : आप कोलकाता से Howrah -> Dhulagori -> Uluberia -> Bagnan -> Kolaghat -> Kharagpur -> Baharagora -> Dhalbhumgarh -> Ghatshila -> Galudih -> Jadugora होते हुए रंकिनी मंदिर पहुँच सकते है। इस रास्ते पर टोल हैं।

place  जादूगोड़ा, रोहिणीबेरा, झारखण्ड, 832102
map  यहाँ क्लिक करें (Google Map)
language  https:
local_phone  +91 0000000000 / 0657 0000000

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