मोहनदास करमचन्द गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) जिन्हें महात्मा गांधी के नाम से भी जाना जाता है, भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। उनकी यादें लौहनगरी से भी जुड़ी हैं। गांधीजी तीन बार जमशेदपुर आए, पहली बार 1917 में, दूसरी बार 1925 में और तीसरी बार 1934 में। गांधीजी 1917 में पहली बार वर्धा (महाराष्ट्र) से चंपारण (बिहार) जाते समय यहाँ रुके थे। दूसरी बार गांधीजी का दौरा 1925 में हुआ, जिसमें उन्होंने न केवल यूनाइटेड क्लब में जनसभा को संबोधित किया, बल्कि टाटा वर्कर्स यूनियन की भी स्थापना की। तीसरी बार 1934 में, गांधीजी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) के साथ जमशेदपुर का दौरा किया, जिसमें उन्होंने टाटा स्टील का भी दौरा किया था।
कंपनी क्वार्टर में खोला था टाटा वर्कर्स यूनियन का कार्यालय
1925 में जब महात्मा गांधी जमशेदपुर आए थे, उस समय टाटा के श्रमिकों की समस्या गहरा गई थी। प्रबंधन से टकराव की नौबत हो गई थी। गांधीजी ने कंपनी प्रबंधन से बात करके न केवल श्रमिकों की समस्या को हल किया, बल्कि टाटा वर्कर्स यूनियन का भी गठन किया। प्रबंधन ने आनन-फानन में यूनियन कार्यालय के लिए क्वार्टर प्रदान किया, जो आउटर सर्कल रोड, बिष्टुपुर में है। गांधीजी ने उसी क्वार्टर (एच 6-1) में टाटा वर्कर्स यूनियन (लेबर एसोसिएशन) की नींव रखी थी। उन्होंने टेबल, कुर्सी, अलमारी, फाइलें, कागज आदि का ऑर्डर दिया और उसी क्वार्टर में करीब तीन घंटे तक रुके और टाटा स्टील के मजदूरों से बात की। यह क्वार्टर शहर के लिए किसी धरोहर से कम नहीं है।
गांधीजी का सपना टाटा वर्कर्स यूनियन का अपना भवन
जब गांधीजी ने 1925 में टाटा वर्कर्स यूनियन कार्यालय की नींव रखी, तो उन्होंने उसी समय कहा कि वे चाहते हैं कि यूनियन का अपना भवन हो। उनके इस सपने को प्रो. अब्दुल बारी ने साकार किया। बिष्टुपुर के. रोड स्थित यूनियन कार्यालय को बारी साहब के द्वारा ही बनवाया गया था। लंबे समय बाद, माइकल जॉन ऑडिटोरियम (Michael John Auditorium) उसी परिसर में बनाया गया था, जिसका उद्घाटन राजीव गांधी (Rajiv Gandhi) ने 1994 में किया था। इस ऑडिटोरियम में यूनियन की बड़ी बैठकें और कार्यक्रम भी होते हैं।
गांधीजी जमशेदपुर सर एडवर्ड ग्रेट के कहने पर आए थे
गांधीजी का कहना था की इस कंपनी को देखने की इच्छा उनके मन में 1917 से ही थी। जब वे चंपारण में किसानों के लिए संघर्ष कर रहे थे, तो अंग्रेज शासक सर एडवर्ड ग्रेट ने उन्हें सलाह दी थी कि टाटा स्टील का कारखाना और शहर देखे बिना बिहार से नहीं जाना चाहिए। गांधी ने कहा कि यहां उन्हें जिस चीज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह भारत के विभिन्न राज्यों से आए विभिन्न धर्मों, जातियों और पंथों के लोगों का मिल-जुलकर रहना है। टाटा ने इस शहर में राष्ट्रीय एकता और सद्भाव का एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है। 1925 में जब गांधीजी जमशेदपुर आए, तो उनके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू भी थे। शहर में रहने के दौरान, गांधीजी टाटा कंपनी के डायरेक्टर्स के बंगले में रहे, जहाँ उनकी मुलाकात आरडी टाटा (जेआरडी टाटा के पिता) से हुई।
गांधीजी 1925 में यूनाइटेड क्लब में की थी जनसभा
1925 में जब गांधीजी आए, तो उन्होंने बिष्टुपुर में यूनाइटेड क्लब के पास एक जनसभा को संबोधित किया। इसमें उन्होंने कहा, ‘सर रतन टाटा दक्षिण अफ्रीका में हमारी मदद के लिए आने वाले पहले व्यक्ति थे, जब मैं वहां के भारतीयों के साथ अपने स्वाभिमान और अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए संघर्ष कर रहा था। उन्होंने मुझे 24 हजार रुपये का चेक भी भेजा था। पत्र में वादा किया था कि यदि आवश्यक हो तो वे और भी भेजेंगे। आप कल्पना कर सकते हैं कि आपका साथ मेरे लिए कितना सुखद है। ‘गांधीजी ने यह भी कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि मैं इस महान इस्पात कारखाने को देख पा रहा हूं। मैं 1917 से यहां आने के बारे में सोच रहा हूं, जब मैं चंपारण के किसानों की सेवा करने की कोशिश कर रहा था। उसी समय सर एडवर्ड ग्रेट ने मुझसे कहा था कि इस कारखाने को देखे बिना मुझे बिहार से नहीं जाना चाहिए लेकिन भगवान जो चाहता है वही होता है और हुआ भी वही।’
हरिजन कोष के लिए दान
गांधीजी तीसरी बार 1934 में पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ इस शहर में आए थे, जब वे पूरे भारत में घूम रहे थे और हरिजन आंदोलन के लिए धन इकट्ठा कर रहे थे। उसी क्रम में गांधीजी जमशेदपुर भी आए और करीब दस घंटे यहां रहे। 4 मई 1934 को रांची से सड़क मार्ग द्वारा उड़ीसा जाने के क्रम में वे यहां पहुंचे थे। उस समय, वह सोनारी और साकची के आसपास की बस्तियों में गए थे, जहाँ उन्होंने हरिजन फंड के लिए दान भी माँगा था। मीरा बेन भीड़ में जाकर धन इकट्ठा कर रही थीं, जिसमें गांधीजी को जमशेदपुर के नागरिकों से दान के रूप में लगभग पांच हजार रुपये मिले।