बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय बंगाल के महान उपन्यासकार थे, जिन्हें सबसे अधिक प्रसिद्धि उनके अमर उपन्यास पथेर पांचाली से मिली। उनका जन्म 12 सितंबर 1894 को घोषपाड़ा-मुरारिपुर गांव (24 परगना, बंगाल) में हुआ था। बचपन से ही उनकी ज़िंदगी कठिनाइयों और आर्थिक संघर्षों से भरी रही, लेकिन साहित्य के प्रति उनका जुनून हमेशा बरकरार रहा।

आरंभिक जीवन और साहित्यिक शुरुआत
परिवार को संभालने के लिए उन्होंने शिक्षक, सचिव और एस्टेट मैनेजर जैसे कई काम किए। 1921 में उनकी पहली कहानी ‘उपेक्षित’ प्रवासि पत्रिका में प्रकाशित हुई। 1928 में जब पथेर पांचाली प्रकाशित हुआ, तब वे बंगाली साहित्य के अग्रणी लेखकों में शामिल हो गए।
घाटशिला और ‘गौरी कुंज’
बिभूतिभूषण को घाटशिला की प्राकृतिक सुंदरता इतनी पसंद आई कि उन्होंने यहाँ अपना एक लाल-टाइलों वाला घर बनवाया, जिसका नाम उन्होंने अपनी पत्नी के नाम पर ‘गौरी कुंज’ रखा। यही वह स्थान है जहाँ उन्होंने अपने कई प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की—ऐसी कृतियाँ जो आगे चलकर अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, जर्मन और हिंदी सहित कई भाषाओं में अनूदित हुईं और विश्व-स्तर पर ख्याति प्राप्त कीं।
उनका यह घर टाटानगर रेलवे स्टेशन से लगभग 58 किलोमीटर दूर, झारखंड के पूर्वी सिंहभूम ज़िले के घाटशिला ब्लॉक के दाहिगोरा क्षेत्र में स्थित है। आज भी यह स्थान बंगाली साहित्य और बिभूतिभूषण के प्रशंसकों के लिए सबसे विशेष आकर्षणों में से एक है।
निजी जीवन
46 वर्ष की आयु में उन्होंने रमा चट्टोपाध्याय से विवाह किया और 1947 में उनके पुत्र तरदास का जन्म हुआ। वे शांत, सरल और प्रकृति-प्रेमी व्यक्तित्व के धनी थे।
निधन
1 नवंबर 1950 को उन्हें हृदयाघात आया और उनका निधन इसी घाटशिला वाले घर में हुआ। उनकी आयु उस समय 56 वर्ष थी। इस स्थान पर आज भी उनके कुछ निजी सामान जैसे उनका धोती-कुर्ता और पदक सुरक्षित रखे गए हैं।
घाटशिला की यात्रा
घाटशिला घूमने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मध्य फरवरी के बीच माना जाता है। यदि आप प्रकृति के प्रेमी हैं और उसे भीतर तक महसूस करना चाहते हैं, तो घाटशिला आपके लिए एक आदर्श गंतव्य है।
