गौरीकुंजा, एक ऐतिहासिक स्थल है, जो बंगाली साहित्य प्रेमियों के लिए बहुत मायने रखता है। यह प्रसिद्ध बंगाली लेखक और उपन्यासकार बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय का घर था, जहाँ वे 1938 से लेकर अपनी मृत्यु तक, यानी 1 नवम्बर 1950 तक अपनी पत्नी और बेटे के साथ रहते थे। यहीं इस महान लेखक ने अंतिम सांस ली, और यहीं पर उन्होंने 56 वर्ष की आयु में निधन प्राप्त किया।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय एक प्रसिद्ध बंगाली लेखक और उपन्यासकार थे। उनका जन्म 12 सितंबर 1894 को घोषपारा-मुरारीपुर गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम महानंदा बंदोपाध्याय था। पेशे से, वह संस्कृत के विद्वान थे। बिभूतिभूषण ने अपने जीवन के शुरुआती दिन बेहद गरीबी में गुजारे। लेकिन फिर भी, यह उनके शैक्षणिक कैरियर को प्रभावित नहीं करता था। सभी बाधाओं को दूर करते हुए, उन्होंने इतिहास में स्नातक की पढ़ाई पूरी की। फिर उन्होंने गौरी देवी के साथ शादी के बंधन में बंध गए, जिनकी एक साल बाद अपने बच्चे को जन्म देते समय मृत्यु हो गई।

साहित्यिक यात्रा और उपलब्धियाँ
बिभूतिभूषण की साहित्यिक यात्रा 1921 में उनकी पहली लघु कहानी के प्रकाशन के साथ शुरू हुई। हालांकि, उनका पहला उपन्यास पाथेर पांचाली (सड़क का गीत) था, जिसने उन्हें दुनिया भर में पहचान दिलाई। इस उपन्यास के साथ, वह बंगाली साहित्य के क्षेत्र में अग्रणी लेखक के रूप में उभरे। प्रसिद्ध फिल्म निर्माता सत्यजीत रे ने इस उपन्यास पर फिल्म बनाई, जो आज भी भारतीय सिनेमा के सबसे महान कार्यों में से एक मानी जाती है।
बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय, जो रवींद्रनाथ ठाकुर (तार्किक विचार और गद्य के लिए प्रसिद्ध) के बाद के युग के सबसे प्रमुख लेखकों में से एक थे, बंगाली साहित्य को एक नई दिशा देने वाले लेखक बने। उनकी कृतियाँ आज भी पाठकों के दिलों में जीवित हैं।
गौरीकुंजा का महत्व
गौरीकुंजा, जो कि बिभूतिभूषण की पहली पत्नी के नाम पर रखा गया था, झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला ब्लॉक में स्थित है। यह स्थान, टाटानगर रेलवे स्टेशन से लगभग 44 किलोमीटर दूर है और बंगाली पर्यटकों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। यहाँ बिभूतिभूषण के कुछ व्यक्तिगत सामान भी संरक्षित हैं, जिनमें उनके धोती-कुर्ता और पदक शामिल हैं, जो उनके साहित्यिक योगदान की याद दिलाते हैं।
अंतिम समय और निधन
बिभूतिभूषण बंदोपाध्याय ने 1 नवम्बर 1950 को घाटशिला में अपने घर, गौरीकुंजा में अंतिम सांस ली। यह घर आज भी उनके साहित्यिक योगदान और उनके जीवन की अनमोल धरोहर के रूप में संरक्षित है।
गौरीकुंजा केवल एक ऐतिहासिक स्थल ही नहीं है, बल्कि यह बंगाली साहित्य के एक महान लेखक की यादों और उनके संघर्षों का प्रतीक भी है। यह स्थान बिभूतिभूषण के जीवन और उनके लेखन को जानने के लिए साहित्य प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बन चुका है।
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